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उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता के तहत विवाह पंजीकरण के लिए दस्तावेज और शुल्क तय
देहरादून, 20 अप्रैल 2025:
उत्तराखंड शासन ने समान नागरिक संहिता (UCC) के अंतर्गत विवाह पंजीकरण को अनिवार्य कर दिया है। इसके तहत पंजीकरण प्रक्रिया के लिए आवश्यक दस्तावेजों और शुल्क का निर्धारण कर दिया गया है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि विवाह पंजीकरण में पारदर्शिता और सरलता लाने के लिए ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों माध्यमों से आवेदन किए जा सकते हैं।
विवाह पंजीकरण के लिए आवश्यक दस्तावेज:
1. पति एवं पत्नी की पासपोर्ट साइज फोटो।
2. विवाहित दंपत्ति की संयुक्त फोटो।
3. शादी का कार्ड (यदि उपलब्ध हो)।
4. आधार संख्या और उससे लिंक मोबाइल नंबर।
5. उत्तराखंड में निवास की पुष्टि हेतु निम्न में से कोई एक दस्तावेज:
स्थायी/मूल निवास प्रमाण पत्र
राजकीय सेवकों के लिए नियोक्ता का प्रमाण पत्र
एक वर्ष से पुराना बिजली या पानी का बिल
किरायानामा (एक वर्ष से अधिक अवधि के लिए)
राज्य/केंद्र सरकार की योजना का लाभार्थी कार्ड संख्या
6. आयु प्रमाण के लिए निम्न में से कोई एक अभिलेख:
जन्म प्रमाण पत्र, पैन कार्ड, पासपोर्ट, वोटर आईडी, ड्राइविंग लाइसेंस, विद्यालय द्वारा जारी टीसी या हाईस्कूल प्रमाण पत्र, जीवन बीमा पॉलिसी की प्रति, सेवा अभिलेख या पेंशन भुगतान आदेश।
7. यदि विवाह पहले से पंजीकृत है तो विवाह पंजीकरण प्रमाण पत्र।
8. यदि बच्चों का जन्म हुआ हो तो उनके जन्म प्रमाण पत्र।
पंजीकरण हेतु शुल्क विवरण:
जिन व्यक्तियों का विवाह समान नागरिक संहिता लागू होने से पूर्व पंजीकृत हो चुका है, उनसे दिनांक 27 जनवरी 2025 से अगले छह माह तक कोई पंजीकरण शुल्क नहीं लिया जाएगा।
विवाह पंजीकरण शुल्क: ₹250/-
तत्काल सेवा के लिए शुल्क: ₹2500/-
90 दिन तक देरी होने पर अतिरिक्त विलंब शुल्क: ₹200/-
90 दिन से अधिक देरी पर प्रत्येक पूर्ण/आंशिक तिमाही के लिए शुल्क: ₹400/- (अधिकतम ₹10,000/- तक)।
यदि जन सेवा केंद्र (सीएससी) के माध्यम से आवेदन किया जाता है, तो अतिरिक्त ₹50/- का शुल्क देय होगा।
सरकार ने नागरिकों से अपील की है कि अधिक जानकारी के लिए ucc.uk.gov.in पर लॉग-इन करें या नजदीकी ग्राम पंचायत विकास अधिकारी, अधिशासी अधिकारी (उपनिबंधक) या उपजिलाधिकारी (निबंधक) से संपर्क करें।
आमजन की मांग:
विवाह पंजीकरण को लेकर आम जनता की ओर से यह मांग उठ रही है कि विवाह पंजीकरण शुल्क और विलंब शुल्क को कम किया जाए या माफ किया जाए। लोगों का कहना है कि कानूनी प्रक्रिया को सबके लिए सुलभ बनाने के लिए सरकार को शुल्क में रियायत देनी चाहिए, खासकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए।