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गुमदेश में श्रद्धा और परंपरा का प्रतीक बना चैतोला मेला, चमू के वीरों ने किया वीरता का प्रदर्शन
लोहाघाट (गुमदेश), 7 अप्रैल:
गुमदेश क्षेत्र के लोहाघाट में चैतोला मेले की भव्य शुरुआत नवरात्रि की पहली तिथि को हुई। पारंपरिक उल्लास और धार्मिक आस्था के साथ आयोजित इस मेले में स्थानीय महिलाओं ने कलश यात्रा निकालकर शुभारंभ किया।
मेले में दिनभर वीर रस से भरपूर पारंपरिक ढुस्कों का गायन किया गया, जबकि रात्रि में देवडांगरों के लिए भोज का आयोजन हुआ। मेले का मुख्य आकर्षण रहे चमू के वीर, जो ढोल-नगाड़ों की गूंज और सिर पर पारंपरिक पगड़ियों के साथ चौखाम बाबा मंदिर पहुंचे। वहां उन्होंने चमू देवता की शान में वीरता से ओतप्रोत ढुस्के गाकर श्रद्धा अर्पित की।
ऐतिहासिक मान्यता के अनुसार, महाभारत काल में इस क्षेत्र में बकासुर दैत्य का आतंक था जो प्रतिदिन एक नरबलि लेता था। चमू देवता ने अपने साथियों के साथ बकासुर का वध कर क्षेत्र को मुक्त कराया था। इस वीरता की स्मृति में आज भी चमू देवता को विशेष चावल के पापड़ भेंट किए जाते हैं।
ये पापड़ रामनवमी के अवसर पर महिलाएं विशेष विधि से तैयार करती हैं। पहले तांबे के बड़े बर्तन में पानी उबाला जाता है, फिर साल के पत्तों पर स्थानीय लाल चावल का पेस्ट लगाया जाता है और भाप में पकाया जाता है। जब तक यह पापड़ देवता को अर्पित नहीं किए जाते, गांव में शुद्ध भोजन की परंपरा का पालन किया जाता है।
चैतोला मेला केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि यह गुमदेश की सांस्कृतिक विरासत, लोक परंपराओं और वीरता की गौरवगाथा का प्रतीक बन गया है।
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